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    यह लेख बिलकुल पकाऊ नहीं है | हिन्दी के बारे में बहुत बड़ी बड़ी भाषणबाजी हुई है, लेकिन एक सच यह भी है कि तमाम हिन्दी भाषा से प्रेम दिखाने वाले अधिकांश लोग या तो दिखावा कर रहे होते हैं , या फिर वे होते है, जो मेहनत तो किए पर अंग्रेजी सीख ना पाये | मजबूरन हिन्दी की तरफदारी करनी पड़ रही है | ये छोटा सा लेख पढ़िए...एक अनुभव साझा किया ग़ा है...




बक़वास बातें मत ही करिये
एडीटर अटैक-

हिंदी के अख़बारों में भी अंग्रेजी जानने वालों को ही नौकरी मिल रही है और आप हैं कि भाषण और स्लोगन पेलने में लगे हैं आज।
हिंदी से रोटी नहीं मिलने वाली भैय्या, और न मिल रही है। मैं 10 वर्षों से पत्रकारिता में हूँ और दावे के साथ कहता हूँ कि भारत के शीर्ष हिंदी अख़बारों में हिंदी पत्रकारों के लिए अंग्रेजी ज्ञान अनिवार्य योग्यता है। जिसे अंग्रेजी ज्ञान नहीं वो पीछे ही रह जाता है हिंदी मीडिया में भी।  हिंदी जानने न जानने से कोई फ़र्क नहीं पड़ता। पत्रकारिता व जन संचार के ज्यादातर विश्वविद्यालयों में सभी पाठ्यक्रम अंग्रेजी में हैं और व्याख्यान अंग्रेजी में होते हैं। हो सकता है भविष्य में हिंदी भी अंग्रेजी में पढ़ाई जाए। और एक बात और बता दें हम ये जो हिंदी के झण्डाबदार जो हिंदी के बड़े पत्रकार और साहित्यकार हैं, उनके बच्चे, नाती पोते कहाँ पढ़ रहे हैं, पता कीजियेगा। एक कोई हिंदी माध्यम से हिंदी माध्यम के स्कूल से शिक्षा ले रहा हो चुनौती है उसे। नाम लेने से कोई मतलब नहीं पर ज्यादातर हिंदी के बड़े लेखक और पत्रकारों के नाती पोते बच्चे विदेश में अध्यनरत हैं, उनका हिंदी से कोई सरोकार नहीं, बस ये आम जन के लिए भाषण ख़ूब देते हैं। हिंदी हैं हम...फलाना ढिमका। जिससे आप का हिंदी प्रेम जाग उठे और आप रोटी से महरूम हो जाएँ। भाड़ में जाये ऐसा थोथा भाषा प्रेम। हमे भोजन चाहिए, फिर वो किस भाषा में मिलता है भूख ये नहीं समझती। पिछले दिनों एक बड़े लेखक का निधन हुआ तो उनके पुत्र से मैंने संपर्क किया, कुछ यादें साझा करने के लिए तो पता लगा उसे हिंदी बोलने में असहजता है, उसे अंग्रेजी में सहजता है। ये हिंदी के अगुवा जनहित में आत्मदाह करने की घोषणा करके मरने के लिए आपको धकेलने वाले लोग हैं। प्लीज़। जबरदस्त अग्रेंजी सीखिये, और वैश्विक भाषा में अग्रणी बनिए। रोजगार पाइए और जीवन सुखमय करिये। ये जो हिंदी सिनेमा है न? ये जो हीरो हेरोइन जी हैं। जिनके आगे जीभ बिछाते हैं हम आप, ये भैया हिंदी फिल्मों की हिंदी स्क्रिप्ट भी अंग्रेजी में अनुवाद कराके पढ़ते हैं। फ़िल्म निर्माण यूनिट से लेकर हर व्यक्ति खा हिंदी की रहा है पर कामकाज पूरा अंग्रेजी में है। हिंदी अख़बारों में 50 प्रतिशत से ज्यादा काम अंग्रेजी से अनुदित किया हुआ है। हिंदी मीडियम स्कूलों में अब वो बच्चे हैं जो सबसे निचले तबके से आते हैं और कमोवेश वो उसी स्तर पर रह जायेंगे, अगर अंग्रेजी से दूर रहे। हिन्दोस्तान में अंग्रेजी रोजगार, इज्जत, सम्मान, रोटी, उन्नति, प्रगति की भाषा है। इसीलिये एकदिन के भाषणों पर गौर न करके अंग्रेजी को चकाचक करो, जीवन चकाचक हो जायेगा।
और एक बात ये जो हिंदी के प्रोफेसर और शिक्षक हैं। जो हिंदी ही पढ़ाते हैं और हिंदी माध्यम के स्कूलों महाविद्यालय में हैं, उनसे पूछिये आपके बच्चे किन स्कूलों में पढ़ रहे हैं। जाइये पता करिये। पता लगेगा इनके घर में भी अंग्रेजी ही बोली जाती है। जैसे हरवंश रॉय बच्चन के नाती घर में भी अंग्रेजी में बतियाते हैं। वो अकेले किसी बड़े हिंदी साहित्यकार के नाती नहीं है सिर्फ अंग्रेजी बोलने वाले, लम्बी कतार है ऐसी।
थोथी बात से चिढ़ है मुझे। पता करिये हिंदी के दस शीर्ष साहित्यकारों के बेटे नाती किस भाषा में दक्ष हैं। कि वही सब ढोंग की आदत है बस।

- डॉ प्रशान्त राजावत
सम्पादक, मीडिया मिरर


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