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लेख - अराध्य शुक्ला

बेसिक शिक्षा के इतिहास में एक बार फिर आज का दिन काफी निराशापूर्ण साबित हुआ,हमारे रहनुमा सचिवालय की छत के तले एसी की ठंडक और चाय की गर्मी के बीच प्रदेश के लाखो शिक्षकों के मान सम्मान और अस्मिता का सौदा करके और माननीय मंत्री जी के साथ अपना चित्र खिंचवा के वापस आ गए,समझ नहीं आता कि जब इन रहनुमाओं के पास अपनी बात कहने की हिम्मत और सलीका ही  नहीं होता तो ये जाते ही किसलिए  है,सबसे पहली बात कि सरकार का कोई भी शासनादेश सम्यक विचार विमर्श के बाद जारी होना चाहिए ,जब हुकूमत ने प्रेरणा का शासनादेश 2 सितंबर को ही जारी कर दिया तो 3 तारीख को किसी तरह की वार्ता का औचित्य सिवा मूर्ख बनाने के और था भी क्या ,ऐसी हालत में किसी भी संगठन को अव्वल तो वार्ता का प्रस्ताव स्वीकार ही नहीं करना चाहिए था.


    मजेदार बात देखिए एक महीने से चल रही कवायद के बाद हमारे नेता सिर्फ हुकूमत को इतना समझा पाए कि निजता का मतलब सिर्फ इतना है कि महिला शिक्षिकाए पुरुष शिक्षकों के साथ सेल्फी न भेजे ,हमारे विद्वान मंत्री जी ने भी इसका अभिप्राय सिर्फ इतना ही समझा,,यानी एक बार फिर शिक्षकों मै मतभेद पैदा करने की साज़िश ,हुकूमत को ये साफ समझ लेना चाहिए कि किसी भी महिला शिक्षिका को अपने पुरुष शिक्षक भाई से तो कभी कोई खतरा नहीं ही है ,हमारी चिंता इस बात को लेकर है कि इसकी मॉनिटरिंग विभाग के जो अधिकारी करेंगे उनकी क्रेडिबिलिटी क्या है ,आपकी नाक के नीचे ट्रायल वाले जिले के एक bsa ने 2शिक्षिकोओ को 2बजे अपने ऑफिस में बुलाया स्पष्टीकरण लेने के लिए हमें खतरा तो इस मानसिकता से है ,आपके इंस्पेक्टर टाइप अधिकारियों की सोच और मानसिकता किसी से छुपी नहीं है ,हमारी शिक्षिकाओं को खतरा इस सोच और मानसिकता से है हमें खतरा तो अधिकारियों के कमरों से आने कहकहो और ठहाको से है जो हमारी बहनों की फोटो को देखकर लिए जा सकते है ,अगर आप इसके लिए कोई सेल बनाते है तो हमें खतरा तो आऊट सोर्सिंग और संविदा के उन लोगो से है जो हमारी नाबालिग बेटियों और शिक्षिका बहनों की तस्वीर के साथ क्या करे,और आप है कि विषय को ही अलग दिशा में ले जाकर सिर्फ हमें चोर साबित करने पे तुले हुए है,आखिर गूगल ने इस ऐप को लेकर जो बाते कही है सरकार उसकी स्पष्टता कीऊ नहीं करती,इसके मॉनिटरिंग ढांचे का उल्लेख शासनादेश में स्पष्ट किसलिए नहीं करती और यही सब कुछ मानसिकता पर सवाल खड़ा करता है ,वाह भाई वाह आपने तो उन शिक्षकों पर ही सवाल खड़ा कर दिया जो बरसो से अपनी बहनों के साथ मिलजुलकर नौकरी करते आ रहे है,आखिर एक दूसरे को आपस में लड़ाने का आपका ये सिलसिला कहा जा कर रुकेगा,आप तो खैर हुकूमत है और हम सर्वहारा हमारे लिए तो दुष्यंत कुमार बहुत पहले कह गए थे
*जिस तरह चाहो बजाओ इस सभा में
हम आदमी नहीं है ,झुनझुने है*
      हमे सिकवा आपसे नहीं आप प्रजापालक नहीं सोषक है ही हमें शिकवा अपनी बिरादरी से है जो आपके सामने आत्मसमर्पण का काम करती है ,आज आपके कमरे में समर्पण करने वाले हमारे नेता कल मुख्यमंत्री जी के कार्यक्रम में आगे की कुर्सियों पर नजर आएंगे ,मै जब इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए अपने ही भाईयो का उतावलापन देखता हूं तो सच में अपनी कौम की मानसिकता पर तरस आता है,
     वैसे मंत्री जी और नेता गण आप दोनों का शुक्रिया आप दोनों ने इश्वरात्व को प्राप्त कर लिया ,ईश्वर भी इंसान को मरने की तारीख नहीं बताता लेकिन आपने कम से कम ये तो बता दिया अभी नहीं मारेंगे दो महीने बाद मारेंगे जब खूब कोहरा पड़ेगा जिससे आपको समूह में और बड़ी तादाद में मरने में सहूलियत हो,शुक्रिया इस एहसान का,,,
     आइए,तब तक किश्तों में खुदकुशी का मज़ा लेते है अगर आनंद मूवी आपने नहीं देखी है तो आने वाले दो महीनों में उसको जी लीजिए..

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