आप चाहें तो यह खुद का सम्मान समझ सकते हैं, चाहे तो किसी तीसरे से मेरी आलोचना जारी रख सकते हैं | सम्मान इसलिए समझ सकते हैं कि आपके शिष्य, अनुज या फिर मित्र को अवध विश्वविद्यालय में आयोजित निबन्ध प्रतियोगिता में तीसरा स्थान मिला | तीसरा भी मायने इसलिए रखता है कि बाकी प्रतिभागी वरिष्ठ (पी.जी.- एम.फिल. यो कोई अन्य सीनियर) थे |
'अयोध्या में पर्यटन' से सम्बन्धित निबन्ध प्रतियोगिता में प्रतिभाग का यह प्रमाण पत्र विश्वविद्यालय के आदरणीय कुलपति मनोज दीक्षित जी द्वारा मिला | विश्वविद्यालय के कुलपति के हाथों से कुछ मिलना अपने आप में एक गर्व की बात है | धन्यवाद डॉ. अनिल विश्वा सर का जिन्होंने प्रतिभाग करने का अवसर दिया और परिणाम की जानकारी भी दी |

धन्यवाद आप सब का, आप से जुड़ के ही मैं सोचना, समझना सीखता हूँ | आशा है आगे भी सीखता रहूँगा | इसलिए अपना साथ, प्रेम और आशीर्वाद बनाये रखियेगा |
आखिर में, धन्यवाद उनका भी, जो सबसे मेरी आलोचनाएँ करने में पीछे नहीं हटते | आप भले ही मेरी बुराई करें, पर आप हमारे लिए प्रेरणा स्रोत हैं | आपकी महानता तभी रहेगी जब आप हमारी गलतियॉ हमें स्पष्ट करें ना कि तीसरे को |
अंतत: यह भी कहुँगा कि जिस द्रोणाचार्य की कुटिया में अर्जुन बनाये जाते हैं, वहॉ एकलव्य की उंगली न काटिए उसे भी एक पहचान दीजिए |
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